छुट्टी


















 


कोई है!
अरे कोई है ???
जो मुझे ज़िन्दगी से दो दिन की छुट्टी दे दे ।

न ऑफिस का डर हो,
न हो घर की फ़िक्र।
न फ़ोन की घंटियों का हो बवाल,
न ही इंटरनेट और wifi   का मायाजाल।
न हो बढ़ते वज़न का डर सबके सर,
न हो हेल्थ फूड्स की इनफार्मेशन का ओवरलोड सबके सर।

जहाँ परांठे और माखन खाने का गिल्ट मुझे न मारे,
गन्ने का जूस पिएं बेहिसाब ,
और गोलगप्पे खाने की रेस लगाएं मिलके सारे।
जहाँ  खिड़की से धुप छनकर आती हो कुछ कच्ची और बहुत सच्ची मेरे आँगन,
जहाँ  कट्टी अब्बा के बीच किलोल मारता हो शैतान बचपन।

जहाँ पतंगों की डोर हो असीमित और असंखय कंचों का खज़ाना,
पकड़म पकड़ाई की होड़ हो और विष अमृत का ज़माना।
ऐसी छुट्टी जहाँ हो मन के ठहराव की आरामदायक चारपाई,
सुकून हो गिलाफ और गरम गरम प्यार की रज़ाई।
जहाँ अपनी ही सांस को आने जाने की न हो कोई जल्दी,
फेस वाश की जगह हो खुशबूदार मिटटी और मेक अप हो कुमकुम हल्दी।
जहां चुप्पी की आवाज़ में अकेलेपन की चीख न हो,
जहाँ बीच दीवार में reinforced सीमेंट से पुती हुई ईंट न हो।

ऐसी जगह कोई कृपा कर मुझे ले जाओ,
कोई है अरे कोई है ???
कोई तो मुझे ज़िन्दगी से दो दिन की छुट्टी दिलवाओ !!!


                                                                                                                                                                                                                                            सस्नेह
                                                                           चारु


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